वीकली ऑफ यानी साप्ताहिक अवकाश

साप्ताहिक अवकाश की शुरुआत इंग्लैंड में सन 1843 से हुई थी, इससे पहले हफ्ते के सातों दिन ऑफिस में काम होता था, जिससे लोग उस समय चर्च नहीं जा पाते थे। इंग्लैंड के क्रिस्चियन संडे को चर्च जाना चाहते थे और ऐसा न कर पाने के कारण उनमें असंतोष की भावना बढ़ने लगी तथा धीरे-धीरे वहां के लोगों में अपने धर्म के प्रति आस्था भी कम होने लगी। जिसे देखकर ब्रिटिश सरकार ने रविवार को साप्ताहिक अवकाश शुरू किया। बाद में दुनियाभर में उन्हीं का अनुसरण किया जाने लगा। पहले हमारे देश की सूती मिलों में सातों दिन काम होता था। महाराष्ट्र के मजदूरों ने 7 साल तक अवकाश के लिए लंबी लड़ाई लड़ी, तब अंग्रेजों ने वर्ष 1890 में रविवार को साप्ताहिक अवकाश घोषित किया।
     अंग्रेजों ने रविवार को ही साप्ताहिक अवकाश का दिन इसलिए चुना था, क्योंकि उनके धर्म के अनुसार क्रिस्चियन लोग इतवार को चर्च जाते हैं, यानी साप्ताहिक अवकाश की शुरुआत भगवान की पूजा के लिए की गई थी। हमारे देश में साप्ताहिक अवकाश हमारे धर्म के अनुसार होना चाहिए था, किंतु आजादी के बाद भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ और इतवार के दिन ही साप्ताहिक अवकाश होता रहा। सरकारी दफ्तरों का अवकाश इतवार को ही होता है, सिर्फ बाजार अलग-अलग दिन बंद रखे जाते हैं।
       असल में 2 दिनों के अवकाश की शुरुआत के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है, दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी फोर्ड की कारों की बिक्री अचानक घटने लगी तब कंपनी के मालिक हेनरी फोर्ड ने अपनी कंपनी में कर्मचारियों को 2 दिनों का अवकाश देना शुरू किया, उन्होंने सोचा था कि इससे उनके कर्मचारी ज्यादा कार खरीदेंगे, बाद में 1932 में पूरी दुनिया में छाई महामंदी के दौरान अमेरिका ने बेरोजगारी से निपटने के लिए अपने देश में 5 दिन का हफ्ता घोषित कर दिया, यानी 2 दिन की छुट्टी और 5 दिन का काम।
      स्पेन की सरकार ने 3 साल के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट लागू किया है इसमें 1 हफ्ते में 32 घंटे यानी 4 दिन काम होगा और 3 दिन का अवकाश मिलेगा। अभी तक स्पेन में कर्मचारियों को हफ्ते में 5 दिन यानी 40 घंटे काम करना होता था हमारे देश में आबादी और बेरोजगारी इतनी ज्यादा है कि कोई भी उतनी ही सैलरी पर पांच,छह या सातों दिन काम करने को तैयार हो जाएगा। हमारे देश में असंगठित क्षेत्र में सात दिन काम करने वाले लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं,  यानी बहुत से लोगों को हफ्ते के सातों दिन काम करना पड़ता है, इसका कारण है भारत और स्पेन की पांच विभिन्नताएं। भारत की आबादी 135 करोड़ है, जबकि स्पेन की आबादी 4 करोड़ 74 लाख है , यानी भारत की आबादी स्पेन से 27 गुना ज्यादा है। ऐसे में जहां आबादी इतनी ज्यादा है वहां ज्यादा लोगों को काम की जरूरत है, ऐसे में काम के दिनों को कम करने पर बेरोजगारी और बढ़ जाएगी। दूसरी बात स्पेन में 1.9 करोड़ लोग ही काम करते हैं, जबकि भारत में 40 करोड़ लोग काम करते हैं। हमारे यहां स्पेन से 20 गुना ज्यादा लोग काम कर रहे हैं, इसके बावजूद हमारे देश में बेरोजगारों की संख्या 12 करोड़ है।
200127 Salary And Wages
अगर काम के दिनों या घंटों की संख्या कम कर दी जाएगी तो बेरोजगारी का ग्राफ और ऊपर चला जाएगा। तीसरी बात है कि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है, जहां कृषि कार्य में घंटे और दिन तय नहीं होते। देश में 10-11 करोड़ किसान हैं और वे साप्ताहिक अवकाश नहीं  लेते, इसके अतिरिक्त छोटे-मोटे काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के 2.7 करोड़ लोगों के लिए साप्ताहिक अवकाश का मतलब उनकी आमदनी कम होना है, क्योंकि वे डेली वेजेस पर काम करते हैं, जिस दिन छुट्टी ले लेंगे, उस दिन का पैसा कट जाएगा, ऐसी स्थिति में साप्ताहिक अवकाश किसे दिया जाए यह तय करना हमारे देश में मुश्किल है। चौथी बात ये है कि वर्ल्ड बैंक की ईज आफ डूइंग बिजनेस रैंक में स्पेन का स्थान तीसवां है यानी यहां कारोबार करना बहुत आसान है, जबकि इस रैंक में भारत का स्थान 63 है। अभी तक भारत की गिनती सर्विस सेक्टर में होती है। आबादी ज्यादा होने से हमारे देश के लोग कारोबार करने की जगह किसी फैक्ट्री में काम करना ज्यादा पसंद करते हैं। पांचवी बात ये है कि स्पेन में 4 दिन के काम को 3 साल के एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया है, इसमें होने वाले 435 करोड रुपए के नुकसान की भरपाई भी वहां की सरकार ही करेगी और इसके लिए 200 कंपनियों को चुना गया है, जिनके 3 हजार से 6 हजार कर्मचारियों को नए साप्ताहिक अवकाश में शिफ्ट किया जाएगा। एक छोटे और अमीर देश के लिए ये सब संभव है पर भारत जैसे बड़े देश के लिए नहीं, क्योंकि हमारे यहां सरकार बहुत सरकारी कंपनियों और योजनाओं को सब्सिडी देती है जो स्पेन के प्रोजेक्ट से कहीं ज्यादा है।
    भारतीय लोगों को अपने काम और जीवन के बीच बैलेंस बनाकर रखना चाहिए।  कार्य को महत्व देने के साथ-साथ अपने आपको, अपने जीवन को और अपने परिवार को भी महत्व देना चाहिए। भारत में गिनती की कुछ बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां एक कांसेप्ट के तौर पर अपने कर्मचारियों को भले ही स्पेन की तरह ऑप्शन दे दें, किंतु भारत के ज्यादातर लोगों के लिए हफ्ते में 3 दिन का अवकाश संभव नहीं है, हां यह जरूर है कि यदि काम से दिमाग में ज्यादा  बोझ पड़ रहा हो और तबीयत सही न लगे तो एक-दो दिन का अवकाश अवश्य ले लेना चाहिए इससे मन मस्तिष्क फिर से तरोताजा होकर अधिक कार्य करने की क्षमता जुटा पाते हैं।
रंजना मिश्रा
कानपुर,उत्तर प्रदेश
TFOI Web Team

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