हिंदू धर्म मे नागों को बहुत ही शुभ माना गया है और उन्हें ऊचा स्थान भी दिया गया है ।
देवादि देव महादेव अपने गले में वासु की नाग को धारण करते है और भगवान विष्नु शेषनाग पर विराजमान है ।शेषनाग की सहायता से ही समुन्द्र मंथन सफल हो पाया था ।हिंदुओं में नाग की पूजा करना और उन्हें प्रसाद चढ़ाना बहुत ही शुभ फलदायी होता है नागों के देवता भगवान शिव माने जाते है ।इस लिये शिव जी के साथ साथ उनके नागों पर भी जल और फूल चढ़ाया जाता है ।माना जाता है कि इससे सर्प दोष से मुक्ति मिलती है । आज हम आपको नागपंचमी की कथा के बारें में बताने जा रहें है जो हमारे प्राचीन ग्रंथों में लिखी गई है ।
एक बार की बात है एक गांव में एक औरत दूध बेचा करती थी। उसकी एक ही पुत्री थी वह बहुत ही संस्कारी और सरल स्वभाव की थी उसकी माँ का नियम था की वह रोज दूध को उबाल कर उन्हें ठंडा करके अपने घर के आँगन में रखती थी ।और फिर घंटा बजाती थी और फिर जितने भी सर्प होते थे वह दूध को पीने आते थे । उसने अपनी बेटी से भी कहाँ था की यह सर्प ही तुम्हारे भाई है ।और अगर मैं ना रहूँ तुम अपने भाइयों को याद कर लेना और उनके लिये दूध अवश्य रखना । कुछ वर्ष बाद वह लड़की बड़ी हो जाती है और उसकी शादी बहुत बड़े खानदान में होती है उस गाँव के मुखिया के सात बेटे थे उनके सब से छोटे बेटे के साथ इसका विवाह होता है । उस घर के सातों बहुओं में से सबसे छोटी बहू ज्यादा संस्कारी थी । उसको बाकी की बहुएं ताना मारती थीं कि तेरा इस दुनियाँ में कोई नही एक माँ थी वो भी मर गई ।
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यह सुन कर भी वह किसी से कुछ भी नही कहती थी ,सावन का महीना शुरू हुआ था सारी बहुएँ बहुत खुश थी उनके भाई उन्हें लेने आने वाले थे और वह पूरा महीना अपने मायके में आराम से व्यतित करने वाली है सबसे बड़ी बहू छोटी बहू के पास आती है और कहती है । तुम्हारें तो कोई भाई नही है अब तुम क्या करोगी ।पूरा श्रावण यही बैठे रहना पड़ेगा यह सुन कर छोटी बहू को बहुत दुख हुआ वह बहुत रोती है और रोते रोते पेड़ के पास जाकर बैठ जाती है, तभी शेषनाग पेड़ से बाहर आते है और उसे याद कराते हैं कि तुम्हारी माँ मुझे दूध पिलाती थी और तुम मेरी बहन की तरह हो तुम चिंता मत करों तुम मेरे साथ नागलोक चलो एक बहना अपने भाई के घर आयें यह उसका अधिकार होता है ।
शेषनाग मनुष्य का रूप धारण कर के छोटी बहू को उसके ससुराल से नाग लोक लेके आते है । यहाँ नाग माता से भी उसको बहुत प्यार मिलता है। वहाँ शेषनाग के छोटे छोटे सर्प हुयें थे । जिनको नाग माता ठंडा दूध पिलाया करती थी एक दिन की बात है छोटी बहू को पता ही नही था की दूध अभी तक ठंडा नही हुआ और उसने गलती से सर्पो को दूध पिलाने के लिये बुला लिया जैसे ही सर्पों ने दूध पिया उनका मुँह जल गया वह बहुत ही क्रोधित हो गयें वह छोटी बहूँ को डसना चाहते थें पर नाग माता के समझाने पर उन्होंने छोटी बहूँ को छोड़ दिया । और फिर शेषनाग अपनी बहन को ससुराल छोड़ आयें।इस वादे के साथ की अगली साल श्रावण में वो फिर आएंगे । इधर छोटे सर्प भी बड़े हो गए थे पर वो छोटी बहूँ से बदला लेना चाहते थे ।
उन्होंने सोचा की इस बार श्रावण में वे उनके घर जाएंगे और वही उसे डस लेंगे । छोटी बहूँ को पता था कि उसके भाई आने वाले है इस लिए उसने एक दिन पहले ही अपने भाइयों के लिये ठंडा दूध मीठी रोटी और फल दाल यह सब बना कर रख दिया ।उसने अपने भाइयों के स्वागत के लिए घर के बाहर सर्प रंगोली भी बनायी और जैसे ही उनके भाई आयें उन पर सुगंधित पुष्पों की वर्षा की उन्हें कुंमकुंम का टीका किया उन्हें खाने के लियें ठंडा दूध मीठी रोटी और फल खिलायें और अपनी गलती के लिए उनसे माफी मांगी ।
उनके सर्प भाइयों को विस्वास हो गया कि उनका मुँह छोटी बहू से गलती से जल गया था इस लिये सबने खुश होकर सब ने मिल कर छोटी बहूँ को एक सुंदर सा हार दिया । और वचन भी दिया कि जो भी हमें तुम्हारी तरह हर साल ठंडा दूध पिलायेगा हम उसे कभी डंस नही करेंगे । और उसे सभी प्रकार के दोषों से मुक्त करेंगे । इस लिये कहाँ जाता है कि नाग पंचमी के दिन सर्पो को दूध पिलाने से घर मे सुख समृद्धि आती है । और व्यक्ति के हर तरह के दोष नष्ट हो जाते हैं । तब से श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी की तिथि को नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है । जिसमें सारी महिलाएं नाग देवता को भाई मान कर उन्हें ठंडा दूध पिलाती है