अंजली माली
महाराष्ट्र मुंबई :
मुंबई जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के 123 करोड़ रुपए के घोटाला मामले में दर्ज हुए एफआईआर की मुंबई पुलिस के वित्तीय अपराध विभाग ने जांच नहीं किया है। इन शब्दों में महानगर दंडाधिकारी ने पुलिस जांच की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है। मुंबई बैंक के अध्यक्ष और विधान परिषद में विपक्ष के नेता प्रवीण दरेकर और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
इसलिए 47वें मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के जस्टिस आर के राजेभोसले ने यह आदेश दिया है कि इस मामले की दोबारा जांच कराकर रिपोर्ट सौंपी जाए।
आदेश में कहा गया है कि आर्थिक अपराध विभाग द्वारा फौजदारी मामले की ठीक से जांच नहीं की गई है। जबकि पहली निष्कर्ष रिपोर्ट में सभी आरोप एक फौजदारी स्वरूप के थे फिर भी इसकी अधिक जांच की जरूरत थी। लेकिन ऐसी कोई जांच नहीं हुई है। ऐसा अदालत ने कहा। मामले के मूल शिकायतकर्ता विवेकानंद गुप्ता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई में कहा था कि उन्हें मामले को बंद करने में कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, प्रतिनिधियों से बात करते हुए गुप्ता ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने शिकायत वापस नहीं ली है। इस सी समरी रिपोर्ट पर पंकज कोटेचा ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने 21 अगस्त 2014 को भी इसी तरह की शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन वित्तीय अपराध विभाग ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की। इसलिए हम हाई कोर्ट चले गए। उस समय राज्य के सहायक वकील ने कहा कि वित्तीय अपराध विभाग ने पहले इस मामले में शिकायत दर्ज किया था। साथ ही संबंधित आवेदक को वित्तीय अपराध विभाग ने अपना मामला बताने के लिए बुलाया था। लेकिन वास्तव में कोटेचा को आर्थिक अपराध विभाग ने जवाब दाखिल करने के लिए नहीं बुलाया और सी समरी रिपोर्ट दाखिल की, इसलिए इस रिपोर्ट का विरोध करने का अधिकार कोटेचा को है ऐसा मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा। यह भी स्पष्ट किया कि कोटेचा ने अपने शिकायत में कहा है कि मुंबै बैंक का घोटाला 1000 से 1200 करोड़ का है।
सी समरी रिपोर्ट क्यों रद्द हुआ क्योंकि :
172 करोड़ रुपये के बॉन्ड से 165 करोड़ रुपये में बिक्री, निजी नाम से बड़ी रकम लेकर, 74 फर्जी श्रमिक संघों को ऋण और अन्य गंभीर वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं। आर्थिक अपराध विभाग ने 74 श्रमिक संघों में से केवल 16 की जांच की। इसके अलावा कोटेचा द्वारा लगाए गए आरोपों को दर्ज नहीं किया गया। यह लोगों का पैसा है। इसका गलत उपयोग करना उचित नहीं है। ऐसे शब्दों में इस मामले में जांच होना आवश्यक होने का मत महानगर दंडाधिकारी ने स्पष्ट किया। साथ ही सी समरी रिपोर्ट को खारिज कर दिया।