उत्तर प्रदेश

पत्र से पत्रकारिता !

एक समय था जब पत्रों के माध्यम से समाचार संपादक को भेजा जाता था समाचार तीन से लेकर 5 दिनों के भीतर संपादकीय कार्यालय पहुंचता था जो स्थानीय संवाददाता के माध्यम से भेजा जाता था पहले खबरों को गुणवत्ता के माध्यम से संवाददाता भेजता था जो अत्यंत ही गोपनीय होता था समाचार प्रकाशित होने के बाद ही लोग या अधिकारियों को इसकी भनक लगती थी लेकिन यदि आज की पत्रकारिता की बात कही जाए तो अधिकांशत लोग पत्रकारिता को एक पैसे का व्यवसाय बन चुके हैं जिससे वास्तविक पत्रकारों की गरिमा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

कौन है इसका जनक जिससे पत्रकारों की गरिमा पर उठ रहे सवाल

कुछ अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादक और अखबार के संपादकों के द्वारा आज पत्रकारिता में किसी प्रकार की योग्यता नहीं देखी जाती उन्हें सिर्फ अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इंटर पास सर्टिफिकेट और कुछ सफेद पोशाक धारी की जी हजूरी की आवश्यकता होती जा रही है जिससे जो वाकई धर्म ईमानदारी निष्ठा के साथ खबरों को एकत्रित कर खबर की वास्तविकता तक जाकर खबर भेजना या प्रकाशित करने का काम करते हैं उनके ऊपर आज प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं क्योंकि जो अखबार और संस्था बिना जाने सिर्फ इंटर पास कर लेने से एजेंसी और माइक देकर चंद कागज़ के टुकड़े के लिए ऐसे लोगों को नियुक्त किया है जिनको पत्रकारिता से नहीं कागज के टुकड़े को ज्यादा अहमियत देते हैं कुछ अखबार और चैनलों में ऐसी खबरें भी ऐसी जगह से दिखाई जाती हैं जो घटना वास्तव में वहां पर हुआ ही नहीं होता है कुछ लोग खबर को पढ़कर चुप रहते हैं लेकिन पढ़े-लिखे लोग खबरों की तह तक जब पहुंचते हैं और उसका खंडन करते हैं तो अखबार और चैनल सार्वजनिक रूप से माफी मांग लेता है सवाल यह उठना है कि ऐसे लोगों को पत्रकारिता में क्यों जोड़ा जाता है जिनको पत्रकारिता से कुछ लेना ही नहीं होता है।

भारत में सबसे पहले भारत का पहला अखबर 29 जनवरी सन् 1780 को छपा। यह भारत का पहला स्वतंत्र विचारों से पूर्ण अखबार थाजो अंग्रेजी भाषा में था। इस अखबार का संपादन ईस्ट इन्डिया कंपनी के भूतपूर्व अधिकारी ” जेम्स ऑगस्टस हिकी” ने कलकत्ता से किया, जो हिकी बंगाल गजट या बंगाल गजेटिअन के नाम से था।

उसके बाद आज अखबार की स्थापना शिव प्रसाद गुप्ता ने की थी। आज अखबार एक हिंदी दैनिक अखबार है। आज अखबार का प्रकाशन 5 सितंबर 1920 को शुरू हुआ था। उसे समय खबरों का पत्र के माध्यम से आदान-प्रदान होता था लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की शुरुआत 17 जुलाई 1995 को बुलेटिन समाचार से शुरू हुआ जिसमें 20 मिनट बुलेटिन समाचार चलाया गया था उसके बाद अनेक अखबारों का प्रचलन शुरू हो गया प्रचलन ने ऐसा मोड़ लिया कि अपने बिजनेस को देखते हुए प्रत्येक गांव में संपर्क सूत्र रखना अखबारों द्वारा शुरू किया गया जिसके बाद पत्रकारिता में भूचाल आ गई और वास्तविक पत्रकारों की गरिमा पर प्रश्न चिन्ह उठने लगे।

संगठनों द्वारा पत्रकारों के गरिमा पर सवाल

भारत में पत्रकार संगठनों का गठन हुआ उसके बाद आज भारत में हजारों पत्रकार संगठन चल रहे हैं यहां तक की प्रत्येक जिले में 2 से 3 संगठन चलाए जा रहे हैं इस संगठन में किसी भी व्यक्ति को सदस्यता शुल्क लेकर प्रेस कार्ड जारी कर दिया जाता है जिससे लोग नहीं समझ पाए कि कौन वास्तविक पत्रकार है और कौन किसी गांव से सिर्फ सदस्य शुल्क देखकर पत्रकार बनाया गया है।

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Bhagavan Upadhyay

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