डेंगू बुखार, वायरस (विषाणु) जनित एक संचारी रोग है। यह एक सामान्य बिमारी है और इसका रोकथाम ही इससे बचने का सबसे आसान तरीका है। भारत में इस बिमारी का “पीक” बरसात के मौसम और उससे ठीक बाद के समय में, कह सकते हैं कि जुलाई से अक्टूबर के महिने में होता है, जो कि अभी चल रहा है। यदि हम सितंबर 2022 तक के आंकड़ों की बात करें, तो अब तक करीब 30,000 लोग डेंगू की चपेट में आ चुके हैं।
डेंगू कैसे फैलता है
डेंगू एक वायरस जनित संचारी रोग है जो मच्छरों के काटने से होता है। सामान्यतः “एडीज़ एजिप्टी” मच्छर जो कि दिन के समय भी काटते हैं, डेंगू फैलाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। यह बिमारी संक्रमित मच्छर के काटने से होता है। डेंगू से संक्रमित व्यक्ति के रक्त में डेंगू के वायरस काफी संख्या में होते हैं और ऐसे में यदि एडीज़़ मच्छर उस संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो डेंगू के वायरस भी मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, फिर वहीं वायरस और विकसित होता है तथा कुछ समय बाद जब वो मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो डेंगू के वायरस उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में भी पहुंच जाते हैं और उसको बिमार कर देते हैं। 3 से 5 दिनों के संक्रामक काल (इनक्यूबेशन पीरियड) के बाद उस व्यक्ति में डेंगू के लक्षण आने लगते हैं।
डेंगू के लक्षण
डेंगू तीन प्रकार का होता है, इसीलिए इसके लक्षण डेंगू के प्रकार पर ही निर्भर करते है। डेंगू के प्रकार–
साधारण डेंगू “सेल्फ लिमिटिंग” होता है अर्थात यह स्वयं ही कुछ समय पश्चात ठीक हो जाता है, केवल कुछ सपोर्टिव उपचार और आराम की आवश्यकता होती है। इसके लक्षण-
अधिकतर मामलों में रोगी को साधारण डेंगू ही होता है और 5 से 7 दिन में रोगी ठीक होने लगता है।
यदि रोगी में साधारण डेंगू के लक्षणों के साथ-साथ हैमेरेज यानि कि रक्तस्राव के भी लक्षण प्रकट होते हैं तो तुरंत चिकित्सिकीय सलाह और उपचार आवश्यक है। इसके लक्षण–
इस अवस्था में अपनी चिकित्सिकीय जांच करवाना बहुत ज़रूरी है, क्यों कि यह जानलेवा भी हो सकता है।
रोगी में जब ऊपर दिए लक्षणों के साथ-साथ शॉक के लक्षण भी आने लग तब इस अवस्था को डेंगू शॉक सिंड्रोम कहते हैं। इस के लक्षण–
डेंगू हैमेरैजिक फ़ीवर और डेंगू शॉक सिंड्रोम के उपचार में बिल्कुल समय नहीं गंवाना चाहिए, क्यों कि ये दोनों अवस्थाएं काफी खतरनाक साबित हो सकती हैं।
उपचार
यदि रोगी को साधारण डेंगू बुखार है तो घर पर ही उपचार वह देखभाल किया जा सकता है। ऐसे में उपचार केवल सिम्प्टोमैटिक (लाक्षणिक) और सपोर्टिव ही दिया जाता है।
यदि रोगी में डेंगू हैमेरेजिक फ़ीवर या डेंगू शॉक सिंड्रोम के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत निकटतम अस्पताल में ले कर जाना चाहिए ताकि रोगी को बिना समय गंवाए परीक्षण के पश्चात आवश्यक उपचार प्रदान किया जा सके। ऐसी अवस्था में रोगी को प्लेटलेट्स और फ्लूइड चढ़ाने की ज़रूरत पड़ सकती है।
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि डेंगू के हर मरीज़ को प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं होती है। यह सिर्फ ज़रूरत होने पर ही दिया जाता है।
रोकथाम
डेंगू की रोकथाम पूर्णतः सम्भव है, यह हमारी जागरूकता और प्रतिभागिता पर निर्भर करता है।
सामान्य उपाय
उपर्युक्त दिए गए दोनों ही उपाय करना बहुत आसान है
अंत में, यदि किसी को डेंगू हो गया हो तो कोशिश करें कि रोगी को मच्छर के काटने से बचाया जाए, ताकि डेंगू का संक्रमण रोका जा सके।
अगर किसी इलाके में मच्छरों की संख्या या रोगियों की संख्या बहुत अधिक है तो नज़दिकी स्वास्थ्य अधिकारी को सूचित अवश्य करें।
जुलाई से अक्टूबर का महीना मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल होता है, इसलिए इस मौसम के दौरान हमें डेंगू से बचने के लिए अधिक सजग हो इन उपायों को अपनाना चाहिए, ताकि डेंगू से होने वाली महामारी को रोका जा सके।